भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

Comptroller and Auditor General of India
भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
भारत के संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India - CAG कैग) के लिए स्वतंत्र पद की व्यवस्था की गई है। यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का प्रधान होता है। यह लोक वित्त का संरक्षक होता है। वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान और संसद के कानून को अक्षुण्ण बनाये रखना इसका कर्तव्य है। कैग को भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में उच्चतम न्यायालय, निर्वाचक आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के समान ही एक मजबूत स्तम्भ माना जाता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इसका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले पूरा हो तक होता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्रता
1. कैग को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की गई है। इन्हें उसी रीति से हटाया जा सकता है जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए निर्धारित की गयी है। इस प्रकार उसको सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर, राष्ट्रपति द्वारा संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से पारित संकप के आधार पर ही हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति के बावजूद वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण नहीं करता है।

2. कैग का वेतन एवं अन्य सेवा शर्तें संसद द्वारा निर्धारित होती हैं तथा नियुक्ति के पश्चात् इसमें कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

3. अपना पद छोड़ने के बाद वह भारत सरकार या राज्य सकार के अधीन किसी और पद के लिए पात्र नहीं होगा।

4. कैग और उसके कार्यालय में सेवा करने वाले व्यक्तियों के वेतन, भत्ते और पेंशन सहित समस्त व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं। इसलिए, संसद में इस पर मतदान नहीं कराया जा सकता है।

कोई भी मंत्री, संसद में कैग का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त कोई भी मंत्री उसके द्वारा किए गए कार्यों की जिम्मेदारी नहीं ले सकता है।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की शक्तियां और कर्त्तव्य
संविधान अनुच्छेद–149 संसद को यह अधिकार देता है कि वह केंद्र, राज्य, किसी अन्य प्राधिकरण या संस्था के महालेखा परीक्षक से जुड़े लेखा मामलों के संबंध में प्रावधान निर्मित करे। इसी के आधार पर, संसद ने महालेखा परीक्षक कर्तव्य, शक्तियां एवं सेवा शर्ते अधिनियम, 1971 को प्रभावी बनाया। इस अधिनियम को 1976 में केंद्र सरकार के लेखा परीक्षा में लेखा को अलग करने हेतु संशोधित किया गया। हालांकि, राज्य सरकारों के लिए लेखा परीक्षा और लेखा दोनों का प्रंबंधन कैग  द्वारा किया जाता है।



नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक की शक्तियां एवं कर्तव्य निम्नलिखित हैं –
1. वह भारत की संचित निधि, आकस्मिकता निधि और भारत के लोक सेवा, प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश जहां, ऐसी निधियां हैं, की संचित निधि, आकस्मिकता निधि और लोक लेखा से संबंधित सभी व्ययों के लेखा परीक्षण करता है।

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2. वह केंद्र और प्रत्येक राज्य की प्राप्तियों एंव व्यय का लेखा परीक्षा स्वयं को यह संतुष्ट करने के लिए करता है कि राजस्व के कर निर्धारण, संग्रहण और उचित आवंटन पर प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करने हेतु नियम और प्रक्रियाएं निर्मित की गई हैं।

3. वह राष्ट्रपति या राज्यपाल के निवेदन पर किसी अन्य प्राधिकरण के लेखाओं का भी लेखा परीक्षण करता है।

4. वह निम्नलिखित की प्राप्तियों और व्ययों का लेखा परीक्षण करता हैं:
(a) केंद्र या राज्य सरकारों के राजस्व से वित्तपोषित सभी निकाय एवं प्राधिकरण।
(b) सरकारी कंपनियां, और
(c) जब संबंध नियमों के अंतर्गत आवश्यक हो तब अन्य निगमों एवं निकायों का लेखा परीक्षण।

5. वह राष्ट्रपति को इस संबंध में सलाहे देता है कि केंद्र और राज्यों के लेखा किस प्रारूप में रखे जाने चाहिए।

6. वह केंद्रीय लेखा से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपता है। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता हैं। ठीक उसी प्रकार वह राज्य लेखा से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को सौपंता है जो उसे विधानमंडल के पटल पर रखवाते है।

7. वह किसी कर या शुल्क की शुद्ध आगमों को निर्धारण और प्रमाणन करता है और इस संबंध में उसका प्रमाण पत्र अंतिम होता है। 'शुद्ध आगम' का अर्थ है कर या शुल्क की कुल प्राप्तियों में से संग्रहण की लागत को घटाकर प्राप्त होने वाला अंश।

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8. वह राज्य सरकार के खातों का संकलन और अनुरक्षण करता है। पहले कैग ही केंद्र सरकार के लेखाओं के संकलन और अनुरक्षण के लिए उत्तरदायी था, किंतु 1976 के पश्चात् उसे इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है।

9. वह संसद की लोक लेखा समिति के मित्र और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, यह ​समिति संसद की ओर से विस्तृत वित्तीय नियंत्रण रखती है।

कैग  राष्ट्रपति को तीन लेखा परीक्षा प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है – विनियोग लेखाओं पर परीक्षण रिपोर्ट, वित्त लेखाओं पर लेखा परीक्षण रिपोर्ट और सरकारी उपक्रामों पर लेखा परीक्षण रिपोर्ट। राष्ट्रपति इन प्रतिवेदनों को संसद के दोनों सदनों के सभा पटलों पर रखता है। इसके उपरांत, लोक लेखा समिति प्रथम दो प्रतिवेदनों की जांच करती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर प्रस्तुत रिपोर्ट को सार्वजनिक उपक्रम संबंधी समिति के पास भेजा जाता है। जांच के बाद लोक लेखा समिति जांच के निष्कर्षों से संसद को अवगत कराती है।

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