राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग - गठन, अध्यक्ष व कार्य

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का गठन
संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes) का गठन किया गया है। मूलत: अनुच्छेद 338 के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध किया गया है, जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण तथा उनसे संबंधित प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करे।

श्रृंखलाबद्ध प्रगतिशील कदमों के पश्चात, 1990 में 65वें संविधान संशोधन अधिनियम को अधिनियमित किया गया। इसके फलस्वरूप अनुसूचित जातिओं और अनुसूचित जनजातियों के लिए एक उच्च स्तरीय बहु-सदस्यीय प्रकृति अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गयी।

पुन: 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संयुक्त राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो पृथक निकायों में विभाजित कर दिया गया तथा अनुच्छेद 338 के अंतर्गत जनजाति और आयोग को दो पृथक निकायों में विभाजित कर दिया गया तथा अनुच्छेद 338 के अंतर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और अनुच्छेद 338 (A) के अंतर्गत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग नामक दो नए आयोगो का गठन किया गया।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की संरचना
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं। वे राष्ट्रपति के आदेश द्वारा नियुक्त होते हैं और उनकी सेवा–शर्तो एवं कार्यकाल का निर्धारण भी राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। वर्तमान नियमों के तहत वे 3 वर्ष की अवधि के लिए पद धारण करते हैं।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के कार्य
1. अनुसूचित जातियों के संवैधानिक और अन्य कानूनी संरक्षण से संबंधित सभी मामलों का निरीक्षण एवं अधीक्षण करना तथा उनके क्रियान्वयन की समीक्षा करना।
2. अनुसूचित जातियों के अधिकारों के हनन और रक्षोपायों के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जांच-पड़ताल करना।
3. अनुसूचित जाति के सामाजिक-आर्थिक विकास के विषय में सलाह देना तथा उनसे संबंधित योजनाओं के निर्माण के समय सहभागिता निभाना और केंद्र व किसी राज्य के अधीन उनके विकास से संबंधित कार्यों का मूयांकन करना।
4. इनके संरक्षण के संबंध में उठाए गए कदमों एवं किए जा रहे कार्यों के विषय में, प्रत्येक वर्ष या जब भी आवश्यक हो, राष्ट्रपति के समक्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत करना।
5. इन संरक्षात्मक उपायों के संदर्भ में, केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना एवं इस संबंध में आवश्यक सिफारिशों तथा अनुसूचित जातियों के सामाजिक–आर्थिक विकास एवं कयाण तथा लाभ के लिए प्रयास करना।

आयोग एक वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। वह जब भी आवश्यक समझे, ऐसा कर सकता है। राष्ट्रपति ऐसी सभी प्रतिवेदनों रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करवाता है। इसके साथ ही आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई को स्पष्ट करने वाला एक ज्ञापन भी इनके साथ रखा जाता है। इस ज्ञापन में आयोग की किसी सिफारिश को अस्वीकृत करने के कारणों का भी उलेख होना चाहिए। इसके साथ ही, राज्यों से संबंधित रिपोर्ट की राष्ट्रपति राज्यपाल को प्रेषित करता है। इस रिपोर्ट को राज्यपाल राज्य विधानमंडल के समक्ष रखता है। रिपोर्ट के साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गयी कार्रवाई का विवरण भी रखा जाता है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की शक्तियां
आयोग को अपने कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए विभिन्न शक्तियां प्रदान की गई हैं। जब आयोग किसी कार्य की जांच-पड़ताल या किसी शिकायत की जांच कर रहा होता है तो इसे दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है। ऐसी दशा में आयोग में याचिका दायर की जा सकती है। यह भारत के किसी भी भाग से किसी भी व्यक्ति को समन जारी करने एवं प्रत्यक्ष हाजिर कराने तथा उसके शपथ का परीक्षण करने आदि शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। इसके साथ ही यह किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा कर सकता है। संघ और प्रत्येक राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वे अनुसूचित जातियों को प्रभावित करने वाली सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करें।

आयोग अन्य पिछड़ा वर्ग और आंल भारतीय समुदाय के मामले में भी उसी प्रकार कार्य करता है, जिस प्रकार वह अनुसूचित जातियों के लिए कार्य करता है। दूसरे शब्दों में, आयोग पिछड़े वर्गों एवं आंल भारतीय समुदाय को संवैधानिक संरक्षण एवं अन्य विधिक संरक्षण के संबंध में भी जांच करेगा और इस संबंध में राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। इस संबंध में पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग के अस्तित्व में आने के बाद भी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को संविधान द्वारा सशक्त किया गया है।

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