भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाएं और तिथियों की महत्वपूर्ण सूची | Bhartiya Itihas Ki Pramukh Ghatnaye

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भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाएं और तिथियां : भारतीय इतिहास के तीन भागों प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत में बांटा गया है, इन कालक्रम में घटी इतिहास की प्रमुख घटनाएं (Important events in Indian history in hindi) पर अनेक प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको उन सभी घटनाओं, उनकी तिथि के साथ संक्षिप्त विवरण बता रहे है। जिससे आपकी भारतीय इतिहास में गहरी पकड़ हो जायेगी। जिसके बाद इससे सं​बंधित कोई भी प्रश्न आसानी के साथ हल कर सकेंगें। तो चलिए जानते है भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाएं–





Important Events in Indian History from 1857 to 1947 

8 अप्रैल, 1857 (मंगल पांडे को फांसी)
1857 की क्रांति के प्रथम विद्रोही सैनिक मंगल पांडे को 8 अप्रैल, 1857 को फांसी की सजा दी गई, जिसके बाद क्रांति का विस्तार हुआ। चर्बीयुक्त कारतूसों के प्रयोग के विरुद्ध पहली घटना 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर की छावनी में घटी जहां मंगल पांडे नामक एक सिपाही ने चर्बी लगे कारतूस के प्रयोग से इंकार करते हुए अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट वॉग और लेफ्टिनेण्ट जनरल ह्यूसन की हत्या कर दी थी।

28 दिसंबर, 1885 (कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन)
एलन एक्टोवियन ह्यूम ने वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी। इसका प्रथम अधिवेशन 28 दिसंबर, 1885 को बंबई (अब मुंबई) स्थित गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया था। वर्ष 1885 में व्योमेश चंद्र बनर्जी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ। कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में कुल 72 सदस्यों ने हिस्सा लिया था।

16 अक्टूबर, 1905 (बंगाल विभाजन)
बंगाल विभाजन की योजना 16 अक्टूबर, 1905 को प्रभावी हुई थी। इसकी घोषणा 19 जुलाई, 1905 को हुई थी। अंग्रेजी सरकार ने बंगाल का विभाजन करके एक नया प्रांत बनाया, जिसमें बंगाल का ढाका, चटगांव, राजशाही, मालदा, त्रिपुरा के पहाड़ी क्षेत्र सम्मिलित थे। इसका नाम पूर्वी बंगाल एवं असम रखा गया था। इसकी राजधानी ढाका थी।

30 दिसंबर, 1906 (मस्लिम लीग की स्थापना)
ढाका में 30 दिसंबर, 1906 को मुस्लिम लीग की स्थापना हुई थी। वर्ष 1908 में आगा खां को इसका स्थायी अध्यक्ष बनाया गया था। मुस्लिम लीग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के प्रति मुसलमानों में निष्ठा बढ़ाना था और मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों की रक्षा करना तथा कांग्रेस के प्रति मुसलमानों में घृणा फैलाना था। 30 दिसंबर, 1906 को ढाका में नवाब सलीमुल्लाह की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग नामक राजनीतिक संगठन की स्थापना करने का निर्णय लिया गया।

28 दिसंबर, 1907 (कांग्रेस का सूरत विभाजन)
कांग्रेस पार्टी में पहला विभाजन 28 दिसंबर, 1907 को सूरत अधिवेशन में हुआ। यहां कांग्रेस के अतिवादी तथा उदारवादियों के बीच मुद्दों के आधार पर वैचारिक मतभेद सामने आया था। कांग्रेस का अतिवादी धड़ा (दल) बाल गंगाधर तिलक या लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाहता था, जबकि उदारवादियों ने रासबिहारी बोस को अध्यक्ष घोषित किया, जिसके बाद कांग्रेस में विभाजन हुआ।

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1 अप्रैल, 1912 (राजधानी परिवर्तन)
कलकत्ता की जगह दिल्ली को 1 अप्रैल, 1912 को भारत की राजधानी बनाया गया था। दिसंबर, 1911 में ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक दरबार का आयोजन किया गया। दिल्ली दरबार में ही 12 दिसंबर, 1911 को बंगाल विभाजन को रद्द घोषित किया गया, साथ ही कलकत्ता की जगह दिल्ली को नई राजधानी बनाने की अनुमति प्रदान की गई।

4 अगस्त, 1914 (प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत)
प्रथम विश्व युद्ध में एक ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया, इटली और तुर्की थे तथा वहीं दूसरी ओर फ्रांस, रूस और इंग्लैंड थे। लॉर्ड हार्डिंग (वायसराय) की बुद्धिमत्ता एवं सहानुभूतिपूर्ण रवैये के कारण प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन को भारत का पूर्ण समर्थन मिला। प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन सरकार द्वारा तुर्की (मुस्लिम) के विरुद्ध युद्ध की घोषणा से मुस्लिम लीग का सरकार के प्रति मोह भंग हो गया। तब मुस्लिम लीग कांग्रेसी नेताओं के अधिक नजदीक आने का प्रयास करने लगे।

28 अप्रैल, 1916 (होमरूल लीग की स्थापना)
बाल गंगाधर तिलक द्वारा 28 अप्रैल, 1916 को पूना में होमरूल लीग की स्थापना की गई। तिलक के पांच महीने बाद ऐनी बेसेंट ने सितंबर, 1916 में अपनी लीग की स्थापना की। जहां तिलक की होमरूल लीग का कार्यक्षेत्र के कर्नाटक, महाराष्ट्र (बंबई को छोड़कर) मध्य प्रांत तथा बरार था, वहीं शेष भारत ऐनी बेसेंट के कार्यक्षेत्र में था। लीग की सर्वाधिक शाखाएं मद्रास में थीं, लेकिन लीग की सर्वाधिक सक्रियता बंबई, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तथा गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में थी।

29 दिसंबर, 1916 (लखनऊ समझौता)
लखनऊ समझौता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के बीच 29 दिसंबर, 1916 को लखनऊ समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते को कांग्रेस ने 29 दिसंबर, 1916 को तथा मुस्लिम लीग ने 31 दिसंबर, 1916 को अंगीकृत किया। इस समझौते में कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग द्वारा संयुक्त रूप से स्वशासन की मांग को तेज करने का उपबंध किया गया था।

17 मार्च, 1919 (रॉलेट ऐक्ट)
केंद्रीय विधानपरिषद से 17 मार्च, 1919 को पारित हुआ विधेयक रॉलेट ऐक्ट या रॉलेट अधिनियम के नाम से जाना गया। रॉलेट अधिनियम के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको जब तक चाहे, बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रख सकती थी, इसलिए इस कानून को 'बिना वकील बिना अपील, बिना दलील का कानून' कहा गया।

13 अप्रैल, 1919 (जलियांवाला बाग हत्याकांड)
बैशाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में कांग्रेसी नेताओं; जैसे–डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। सभास्थल पर अंग्रेज जनरल डायर ने बिना कोई पूर्व सूचना या चेतावनी के भीड़ पर गोली चलवा दी, जिसमें हजारों लोग मारे गए। हत्याकांड के विरोध में रबींद्रनाथ टैगोर ने 'नाइट' की उपाधि वापस कर दी, वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरनायर ने भी वायसराय की कार्यकारिणी परिषद से त्याग-पत्र दे दिया।

17 अक्टबर, 1919 (खिलाफत दिवस)
भारत के मुसलमान तुर्की (टर्की) के सुल्तान को इस्लाम का खलीफा मानते थे। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की मित्र देशों के विरुद्ध लड़ रहा था, युद्ध के समय ब्रिटिश राजनीतिज्ञों ने भारतीय मुसलमानों को वचन दिया था कि वे तुर्की साम्राज्य को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने तुर्की के सुल्तान के समस्त अधिकार छीन लिए। गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को हिन्दू-मुस्लिम एकता का सुनहरा अवसर माना। 17 अक्टूबर, 1919 को अखिल भारतीय स्तर पर खिलाफत दिवस मनाया गया।

1 अगस्त, 1920 (असहयोग आंदोलन की शुरुआत)
गांधीजी ने 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया। जिसमें गांधीजी ने अपना कैसर-ए-हिन्द, जूलु युद्ध पदक और बोअर पदक वापस कर दिया। असहयोग आंदोलन की शुरुआत के समय ही कांग्रेस को तिलक की मृत्यु (1 अगस्त, 1920) का एक बड़ा सदमा झेलना पड़ा।

5 फरवरी, 1922 (चौरी-चौरा हत्याकांड)
गांधीजी द्वारा वायसराय को दी गई धमकी की समय-सीमा पूरी होने से पहले ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी, 1922 को एक घटना घटी। चौरी-चौरा कांड के नाम से चर्चित इस घटना के अन्तर्गत क्रोध से आग-बबूला भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिन्दा जला दिया। चौरी-चौरा की घटना से गांधीजी इतने आहत हुए कि उन्होंने आंदोलन को तत्काल वापस लेने का निर्णय लिया।





9 अगस्त, 1925 (काकोरी कांड)
उत्तर रेलवे के लखनऊ-सहारनपुर सम्भाग के काकोरी नामक स्थान पर 9 अगस्त, 1925 को 8-डाउन ट्रेन पर डकैती डालकर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। इसके पश्चात् 29 लोगों को गिरफ्तार करके उन पर मुकदमा चलाया गया। काकोरी षड्यन्त्र कांड में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रोशनलाल तथा राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। बता दे कि उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास के एक अहम् अध्याय ‘काकोरी कांड’ का नाम बदलकर ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ कर दिया है।

3 फरवरी, 1928 (साइमन कमीशन का भारत आगमन)
कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। इस दिन संपूर्ण भारत में हड़ताल रखी गई। साइमन कमीशन की नियुक्ति भारत में संवैधानिक विकास की प्रक्रिया के विकास को समझने तथा उस पर अपना सुझाव देने के लिए की गई थी, किन्तु कमीशन में किसी भारतीय सदस्य को नियुक्त नहीं किए जाने के कारण इसका विरोध किया गया।

17 दिसंबर, 1928 (सांडर्स हत्याकांड)
लाहौर के सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स ने 30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन विरोधी अभियान के दौरान लाला लाजपत राय पर लाठी चार्ज करवाकर उन्हें घातक रूप से घायल कर दिया था। भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और राजगुरु ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर रेलवे स्टेशन पर सांडर्स की हत्या कर दी।

8 अप्रैल, 1929 (असेंबली बम कांड)
भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को केंद्रीय विधानसभा में बम फेंके। इन्होंने पब्लिक सेफ्टी बिल तथा ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में बम फेंका था, जिसका उद्देश्य सरकार को डराना मात्र था। बम खाली स्थान पर फेंका गया था। भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। 23 मार्च, 1931 को लाहौर षड्यन्त्र केस में भगतसिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फांसी दे दी गई।

1930-32 (गोलमेज सम्मेलन)
प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर, 1930 को; द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितंबर, 1931 को तथा तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर, 1932 को आरम्भ हुआ था। इन तीनों गोलमेज सम्मेलनों का उद्देश्य साइमन कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर चर्चा करना था। भारत में स्वराज, स्वशासन इत्यादि की माँगों के बढ़ने के कारण ब्रिटिश सरकार ने ऐसे सम्मेलनों का आयोजन किया।

12 मार्च, 1930 (दांडी मार्च)
गांधीजी ने 12 मार्च, 1930 को ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह शुरू किया और साबरमती आश्रम से अपने 78 समर्थकों के साथ दांडी के लिए पदयात्रा प्रारम्भ की। 24 दिनों के पश्चात् यह पदयात्रा 240 मील (375 किमी) चलकर 5 अप्रैल को दांडी पहुंची। 6 अप्रैल को गांधीजी ने नमक बनाकर कानून तोड़ा। इसके पश्चात् पूरे देश में नमक सत्याग्रह शुरू हो गया।

5 मार्च, 1931 (गांधी-इरविन समझौता)
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान गांधीजी समेत सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। 26 जनवरी, 1931 को गांधीजी सहित सारे नेता जेल से रिहा कर दिए गए। गांधीजी ने 19 फरवरी, 1931 को इरविन से भेंट की 15 दिन चली वार्ता के फलस्वरूप 5 मार्च को एक समझौता हुआ, जिसे गांधी-इरविन समझौता या दिल्ली समझौता कहा जाता है।

26 सितंबर, 1932 (पूना समझौता)
गांधीजी की अस्वस्थता के कारण 26 सितंबर, 1932 को मदन मोहन मालवीय, सी. राजगोपालाचारी, राजेन्द्र प्रसाद तथा पुरुषोत्तम दास के प्रयत्नों से गांधीजी व दलित नेता डॉ. अम्बेडकर के मध्य एक समझौता हुआ, जिसे पूना पैक्ट या पूना समझौता कहा गया। इस समझौते के अन्तर्गत दलित वर्ग के लिए पृथक् निर्वाचक मण्डल समाप्त कर दिया गया। प्रान्तीय विधानमंडल में दलितों के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 147 कर दी गई तथा केंद्रीय विधानमंडल में सुरक्षित सीटों की संख्या में 18% की वृद्धि की गई।

12 जनवरी, 1934 (मास्टर सूर्यसेन को फांसी)
पूर्वी बंगाल में चटगांव नामक बंदरगाह पर मशहूर क्रांतिकारी सूर्यसेन के नेतृत्व में वहां के क्रांतिकारियों ने विद्रोह का प्रयत्न किया। सूर्यसेन ने इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (IRA) की स्थापना की। इसके सदस्यों में लोकीनाथ वाउल, प्रीतिलता वाडेकर, गणेश घोष, कल्पना दत्त आदि शामिल थे। विद्रोह में कई क्रांतिकारी पकड़े गए और उन पर मुकदमा दायर हुआ। सूर्यसेन को 16 फरवरी, 1933 को गिरफ्तार कर लिया गया और 12 जनवरी, 1934 को इन्हें फांसी दे दी गई।

8 अगस्त, 1940 (अगस्त प्रस्ताव)
वायसराय लिनलिथगो ने 8 अगस्त, 1940 को कांग्रेस का सहयोग प्राप्त करने के लिए एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे 'अगस्त प्रस्ताव' कहा जाता है। कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया था। अगस्त प्रस्ताव के मुख्य बिन्दुओं में युद्ध के बाद प्रतिनिधि मूलक संविधान निर्मात्री संस्था का गठन, वायसराय की कार्यकारिणी की संख्या में अतिशीघ्र वृद्धि, एक युद्ध सलाहकार परिषद का गठन शामिल थे।

17 अक्टूबर, 1940 (व्यक्तिगत सत्याग्रह)
अगस्त प्रस्ताव को अस्वीकार करने के पश्चात् कांग्रेस ने व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू करने का निर्णय लिया। इसका उद्देश्य युद्ध के विरुद्ध प्रचार करना था। व्यक्तिगत सत्याग्रह 17 अक्टूबर, 1940 को पवनार आश्रम (महाराष्ट्र) से प्रारम्भ हुआ। पहले सत्याग्रही विनोबा भावे तथा दूसरे जवाहरलाल नेहरू तथा तीसरे सरदार पटेल थे।

9 अगस्त, 1942 (भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत)
7 अगस्त, 1942 को मौलाना अबुल कलाम की अध्यक्षता में बंबई के ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक में अखिल भारतीय कांग्रेस की एक बैठक हुई, जिसमें वर्धा प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई। नेहरू ने भारत छोड़ो प्रस्ताव पेश किया, जिसे थोड़े बहुत संशोधनों के साथ 8 अगस्त, 1942 को स्वीकार कर लिया गया। गांधीजी ने अपने ऐतिहासिक संबोधन में कहा 'मैं आपको एक मंत्र देता हूं-करो या मरो।' जिसका अर्थ था हम भारत को आजाद कराएंगे या इस प्रयास में अपनी जान दे देंगे। यह आंदोलन 9 अगस्त, 1942 से प्रारम्भ हुआ।

21 अक्टूबर, 1943 (सुभाष चंद्र बोस द्वारा अस्थायी सरकार का गठन)
आजाद हिन्द फौज का गठन कैप्टन मोहन सिंह ने उन 40000 भारतीय सैनिकों से किया था, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से लड़ते हुए सिंगापुर के पतन के पश्चात् जापान के समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया था। 21 अक्टूबर, 1943 को रास बिहारी बोस व कैप्टन मोहन सिंह की पहल पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस को इस सेना का सर्वोच्च सेनापति बना दिया गया।

10 जलाई, 1944 (सीआर फॉर्मूला)
राजगोपालाचारी, कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के समझौते के पूर्ण पक्षधर थे। 10 जुलाई, 1944 को उन्होंने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के समझौते की एक योजना प्रस्तुत की, जिसके मुख्य बिन्दु निम्नलिखित हैं–
• मुस्लिम लीग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करे तथा अस्थायी सरकार गठन में कांग्रेस के साथ सहयोगी की भूमिका अदा करें।
• द्वितीय विश्व युद्ध के सामाप्त होने पर भारत के उत्तर-पश्चिम व पूर्वी भागों में स्थित मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण करने के लिए एक कमीशन नियुक्त किया जाए, फिर वयस्क मताधिकार प्रणाली के आधार पर इन क्षेत्रों के निवासियों की मतगणना करके भारत से
उनके सम्बन्ध विच्छेद के प्रश्न का निर्णय लिया जाए।
• मतगणना के पूर्व सभी राजनीतिक दलों को अपने दृष्टिकोण के प्रचार की पूरी स्वतंत्रता हो।

25 जून, 1945 (शिमला सम्मेलन)
वायसराय वैवेल ने 25 जून, 1945 को शिमला में एक सम्मेलन बुलाया। इसमें 21 भारतीय राजनीतिज्ञों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया था। वायसराय ने अपनी कार्यकारिणी में 14 सदस्य रखने का निर्णय लिया। 5 कांग्रेस के, 5 मुस्लिम लीग तथा 4 अन्य सदस्य थे। कांग्रेस द्वारा मौलाना अबुल कलाम को भी चुना गया, लेकिन जिन्ना ने कांग्रेस द्वारा मुस्लिम सदस्य चुनने का विरोध किया।

22 फरवरी, 1946 (नौसेना विद्रोह)
रॉयल इंडियन नेवी के गैर-कमीशन अधिकारियों एवं सैनिकों, जिन्हें रेटिग्ज कहा जाता था, ने नस्लीय भेद-भाव तथा खराब भोजन के प्रतिवाद में 18 फरवरी, 1946 को हड़ताल कर दी। यह विद्रोह बंबई के नौसैनिक प्रशिक्षण पोत तलवार पर किया गया था। नौसेना विद्रोह के समर्थन में 22 फरवरी, 1946 को बंबई में अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन हुआ। इसमें 20 लाख मजदूरों ने भाग लिया।

29 मार्च, 1946 (कैबिनेट मिशन का आगमन)
इंग्लैंड में 1945 के चुनाव में लेबर पार्टी की जीत हुई। इस दल के नेता एटली ने प्रधानमंत्री पद संभाला तथा पैथिक लॉरेन्स नए भारत सचिव बने। जनवरी, 1946 में ब्रिटेन लेबर पार्टी के नेता एटली ने भारतीय नेताओं से अनौपचारिक स्तर पर बातचीत करने के लिए एक संसदीय दल को भारत भेजने का निर्णय लिया, जिसे कैबिनेट मिशन कहा गया। 29 मार्च, 1946 को कैबिनेट मिशन भारत आया।

24 अगस्त, 1946 (अंतरिम सरकार का गठन)
कांग्रेस द्वारा वायसराय के नवीनतम प्रस्तावों को स्वीकार कर लेने के बाद 1 अगस्त, 1946 को वेवेल ने कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के लिए निमंत्रण दिया। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 24 अगस्त, 1946 को भारत की पहली अंतरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ। मुस्लिम लीग ने अंतरिम सरकार में भागेदारी नहीं की।

9 दिसंबर, 1946 (संविधान सभा की पहली बैठक)
संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई। डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा को संविधान सभा का अस्थायी सदस्य बनाया गया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 11 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा का स्थायी सदस्य नियुक्त किया गया। संविधान सभा को 'भारतीय संविधान' को तैयार करने के उद्देश्य से निर्वाचित किया गया था। संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन के समय के साथ संविधान निर्माण का कार्य पूरा किया।

3 जून, 1947 (माउंटबेटन योजना)

ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 3 जून, 1947 को हाउस ऑफ कॉमंस में विभाजन योजना (तीन जून योजना) जिसे माउंटबेटन योजना भी कहा जाता है, की घोषणा की। तीन जून की योजना मूलतः भारत विभाजन की योजना थी, इसमें उस प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित की जानी थी तथा मुस्लिम बहुल प्रांतों को यह चुनना था कि वे भारत में रहेंगे या प्रस्तावित राज्य पाकिस्तान में शामिल होंगे।

15 अगस्त, 1947 (भारत की स्वतंत्रता का दिवस)
भारत ब्रिटिश उपनिवेश की गुलामी से 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। 200 वर्षों की ब्रिटिश दक्षता के पश्चात् भारत ने प्रथम बार मुक्ति का अनुभव किया। लॉर्ड माउंटबेटन को स्वतंत्र भारत का प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल नियुक्त किया गया तथा जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री बनाया गया। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947) में यह प्रावधान किया गया था कि 15 अगस्त, 1947 से भारत और पाकिस्तान नामक डोमीनियन की स्थापना की जाएगी।


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