राजा राममोहन राय पर निबंध हिंदी में

raja ram mohan roy essay in hindi

राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। राजा राम मोहन राय का जन्‍म 22 मई, 1772 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर गांव हुआ था। उनके पिता रमाकांत राय एक हिन्‍दू ब्राह्मण थे, लेकिन बचपन से ही वह कई हिन्‍दू रूढ़ियों से दूर रहे। 15 वर्ष की आयु तक उन्होंने बंगाली, संस्कृत, अरबी और फारसी भाषाओं को सीख लिया था। वह ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता और बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उन​के आंदोलनों ने जहां पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आंदोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया। हिंदी के प्रति उनका अगाध स्नेह था। वह रूढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे, लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे। उन्होंने 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भी काम किया। नौकरी छोड़कर उन्होंने अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया।

स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वह दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी, जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे। राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया। उन्होंने बाल-विवाह, सती प्रथा, जा-वाद, कर्मकांड और पर्दा प्रथा आदि का भरपूर विरोध किया। उन्होंने 'ब्रह्ममैनिकल मैगनीज', 'संवाद कौमुदी', 'मिरात-उल-अखबार' और 'बंगदूत' जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन और प्रकाशन किया। 'बंगदूत' में बांग्ला, हिंदी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। राजा राममोहन राय एक महान विद्वान और स्वतंत्र विचारक थे। मुगल शासकों ने उन्हें 'राजा' की उपमा दी थी। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक थे, जो भारत का समाजवादी आंदोलन भी था। नवंबर, 1830 में राजा राममोहन राय ने ब्रिटेन की यात्रा की। उनका ब्रिस्टल के समीप स्टाप्लेटन में 27 सितंबर 1833 को निधन हो गया।

राजा राममोहन राय के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक विचार–
1. परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता।
2. पाप कर्म का त्याग करना तथा उसके लिए प्रायश्चित करना मोक्ष का साधन है।
3. संसार में सभी धर्म ग्रंथ अधूरे हैं।
4. वह सम्पूर्ण गुणों का भंडार है।
5. ईश्वर केवल एक है, उसका कोई अंत नहीं सभी जीवित वस्तुओं में परमात्मा का अस्तित्व है।
6. परमात्मा प्रार्थना सुनता तथा स्वीकार करता है।
7. हिन्दी में अखिल भारतीय भाषा बनने की क्षमता है।
8. प्रत्येक स्त्री को पुरूषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है। हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए।


9. समाचार-पत्रों को पिछड़ी जातियों तक पहुंचाया जाए, जिससे कि वे ज्ञान के प्रकाश से सराबोर हो सके।
10. सभी जाति के मनुष्यों को ईश्वर पूजा का अधिकार प्राप्त है।
11. पूजा मन से होती है।
12. मैं हिन्दू धर्म का नहीं, उसमें व्याप्त कुरीतियों का विरोधी हूँ।
13. यह व्यापक विशाल विश्वब्रह्म का पवित्र मन्दिर है, शुद्ध शास्त्र है। श्रद्धा ही धर्म का मूल है, प्रेम ही परम साधन है। स्वार्थों का त्याग ही वैराग्य है।
14. विचलित करने वाले अन्धविश्वासी हैं, धर्माध हैं, वे पूरे समाज में अन्धकार फैलाना चाहते हैं।
15. ज्ञान की ज्योति से मानव मन के अन्धकार को दूर किया जा सकता है।


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