भारत-रूस संबंध सम्बन्ध (India–Russia relations) : 1991 में विघटन के पहले रूस को सोवियत संघ के नाम से जाना जाता था। भारत व
सोवियत के संबंध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही अत्यंत घनिष्ठ रहे हैं। शीत
युद्धकाल, 1945-1991 में दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक व सुरक्षा संबंध मजबूत
थे। इसका एक प्रमुख कारण शीत युद्ध का प्रभाव था। शीत युद्धकाल में विश्व दो विरोधी
गुटों में बंटा था। साम्यवादी देशों का नेतृत्व सोवियत संघ के हाथ में था तथा
पश्चिमी पूँजीवादी गुट का नेतृत्व अमरीका के हाथ में था। यद्यपि भारत ने आजादी के
बाद से ही गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुशरण किया, लेकिन इस नीति के अंतर्गत उठाए
जाने वाले मुद्दे जैसे उपनिवेशवाद तथा नव-उपनिवेशवाद का विरोध आदि पश्चिमी देशों के
विरुद्ध थे। अतः स्वाभविक रूप से अमरीका व पश्चिमी देश भारत की गुटनिरपेक्षता की
नीति के विरुद्ध थे। अमरीका व अन्य पूंजीवादी देश भारत की मिश्रित अर्थव्यवस्था व
समाजवादी नीतियों को भी पसंद नहीं करते थे, क्योंकि ये नीतियां उनके आर्थिक हितों
के अनुकूल नहीं थीं। ऐसी स्थिति में शीत युद्धकाल में भारत की विदेश नीति का झुकाव
सोवियत संघ की ओर हो गया था।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि रूस ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपना राजनीतिक
समर्थन प्रदान किया था तथा दोनों देशों ने संबंधों को नया आयाम देने के लिए 1971 मे
शांति, मित्रता व सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर भी किए थे। इस संधि का महत्व इस बात
में था कि 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय अमरीका पाकिस्तान के पक्ष में भारत के
विरुद्ध सैनिक कार्यवाही की धमकी दे रहा था। ऐसी स्थिति में सोवियत संघ द्वारा भारत
की सुरक्षा की गारंटी महत्वपूर्ण थी। सोवियत संघ के साथ भारत की इस संधि के कारण
भारत पर यह आरोप लगाया गया था कि भारत ने अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति का त्याग कर
दिया है। भारत ने 1956 में हंगरी में 1968 में चेकोस्लोवकिया में तथा 1979 में
अफगानिस्तान में सोवियत सैनिक हस्तक्षेप का सीधा व खुलकर विरोध नहीं किया। कुल
मिलाकर शीतयुद्ध काल में भारत व सोवियत संघ के बीच रक्षा उपकारणों की आपूर्ति,
इनर्जी, संस्कृति व शिक्षा तथा उच्च तकनीकी के क्षेत्र में घनिष्ठ संबंध थे।
उत्तर-शीत युद्धकाल में भारत ने रूस के साथ अपने विशिष्ट संबंधों को सदैव प्राथमिकता
दी है। अपनी सामरिक स्वायत्तता की नीति पर चलते हुए भारत ने अमरीका से अपने घनिष्ठ
संबंधों के बावजूद रूस के साथ साझेदारी को मजबूत करने का प्रयास किया है। वर्तमान
में दोनों देशों के बीच प्रतिरक्षा, परमाणु ऊर्जा, अन्तरिक्ष विज्ञान, तेल व
प्राकृतिक गैस आदि के क्षेत्र में उल्लेखनीय सहयोग दिखाई देता है। भारत प्रतिवर्ष
अपनी रक्षा जरूरतों का, जो आयात करता है, आज भी उसमें आधे से अधिक आयात रूस से ही
होता है। भारत के मिग व सुखोई लड़ाकू विमान, ब्राह्मोस मिसाइल तथा विक्रमादित्य
विमानवाहक के पोत आदि सभी रूस से ही आयातित हैं। इसी तरह भारत के तमिलनाडु राज्य के
कूडनकूलम स्थान पर परमाणु संयंत्र का निर्माण भी रूस द्वारा ही किया जा रहा है।
भारत ने रूस में तेल खोज व उत्पादन में निवेश किया है। रूस ने भारत को सदैव
अन्तरिक्ष तकनीकी में भी मदद की है। दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में
मात्र 10 बिलियन डॉलर है जिसमें विस्तार की अपार सम्भावनाएं हैं। दोनों देशों ने
2025 तक इस व्यापार को 30 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है।
रूस सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थक है। रूस ने ही शंघाई
सहयोग संगठन में भारत की सदस्यता का समर्थन किया है। रूस आज भी कश्मीर समस्या पर
भारत के रुख का पक्षधर है।
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