पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) क्या है?

Environmental impact assessment
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन मसौदा 2020 भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEECC) द्वारा 23 मार्च, 2020 को जारी किया गया था। पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA-ईआईए) के लिए आम जनता से प्रतिक्रियाएँ भी मांगी गई थी, जिसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 अगस्त 2020 तक की सीमा दी थी।



वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2014 से 24 अप्रैल, 2020 के बीच पर्यावरणीय मंजूरी के लिए मिले 2,592 प्रस्तावों में से 2,256 को मंजूरी दी है, यानी मंजूरी की दर 87 प्रतिशत रही। इनमें से 270 परियोजनाएं जैव-विविधता वाले हॉटस्पॉट और राष्ट्रीय उद्यानों में और इसके आसपास की है। इसी को लेकर Fridays For Future India (FFF) ने पर्यावरण संरक्षण हेतु कई आंदोलन भी किए।

भारत में 1970-80 के दशक में पर्यावरण संरक्षण के लिए कानून बनाने के काम शुरू हुआ। 1972 में स्टॉक होम समझौते में पर्यावरण बचाने के मसौदे पर हस्ताक्षर कर भारत ने इसके प्रति अपनी गम्भीरता जाहिर की। इस समझौते के आलोक में 1974 में जल और 1981 में वायु से संबंधित कानून बनाए गए। 1984 के भोपाल गैसत्रासदी के बाद एक समुक्ति पर्यावरण नीति की आवश्यकता महसूस की गई, जिसे पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के जरिए पूरा किया गया। इस कानून में ही बताया गया कि आने वाले समय में पर्यावरण प्रभाव आकलन कानून भी बनाया जाएगा। इस अधिनियम में वर्णित संदर्मों के आलोक में ही 1994 में कुछ विशेष मानदंड बनाए गए और बाद में इनमें संशोधन मी किए गए। वर्ष 2006 में इस कानून में कुछ सुधार किए गए। इसके बाद 2020 तक यह कानून उसी रूप में लागू रहा।





क्या है पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment-EIA)
जो विकास परियोजनाएं लागू होने वाली होती हैं, उनका पर्यावरण पर क्या हानिकारक प्रभाव पड़ेगा, इस हानि को कम करने के क्या उपाय हैं। इन सबके बारे में सुझाव देने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) का गठन किया गया है। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) की शर्तों को पूरा करने के बाद ही पर्यावरण मंत्रालय विकास परियोजनाओं पर अपनी मुहर लगाता है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन कानून भारत में पर्यावरण संरक्षण को एक कानूनी ढाँचा देता है। उदाहरण के लिए कोई बड़ी फैक्ट्री लग रही हो चाहे वह सरकारी हो या प्राइवेट। अब वह किसी भी तरह से पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाए या प्राकृतिक संसाधनों का गलत तरीके से दोहन ना करें। इसके लिए वह फैक्ट्री शुरू होने से पहले उसका पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन कर एक रिपोर्ट बनाया जाता है। रिपोर्ट में कोई बड़ी खामी नहीं मिलने पर ही किसी प्रोजेक्ट को शुरू करने की अनुमति दी जाती है।

• आजादी के बाद सर्वप्रथम 1970 के दशक में नदी घाटी परियोजनाओं के संदर्भ में इन परियोजनाओं के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की ओर ध्यान गया और उसके आकलन की शुरूआत हुई।
• 1994 में पर्यावरण प्रभाव आकलन के लिए कानून बना कर इसे 32 प्रकार की परियोजनाओं के लिए आवश्यक ठहराया गया।
• उन प्रावधानों में 2006 में पुनः संशोधन करके पर्यावरण प्रमाव आकलन के बाद ही किसी परियोजना के निर्माण की हरी
झंडी देने की व्यवस्था हुई और उसके लिए विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई, जो आज तक लागू है। वर्तमान प्रक्रिया के अनुसार नया प्रोजेक्ट लगाने या किसी परियोजना का विस्तार करने के लिए पहले पर्यावरण स्वीकृति लेनी पड़ती है।
• परियोजनाओं को दो श्रेणियों में बाँटा गया है। 'ए' श्रेणी की परियोजनाओं के लिए स्वीकृति वन-पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय केन्द्र सरकार द्वारा पर्यावरण प्रभाव आकलन की पूरी प्रक्रिया के बाद दी जाती है और 'बी श्रेणी की परियोजनाओं के लिए स्वीकृति राज्य सरकार के स्तर पर तदर्थ स्थापित विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के माध्यम से दी जाती है. पर्यावरण प्रभाव आकलन चार चरणों में होता हैं–

पहला चरण : इसमें जांच की जाती है और पर्यावरण प्रभाव आकलन के प्रावधानों के अंतर्गत आने वाली और न आने वाली परियोजनाओं को अलग किया जाता है।
दूसरा चरण : इसमें विशेषज्ञ समिति द्वारा मुद्दों और कार्यक्षेत्र का निर्धारण किया जाता है।
तीसरा चरण : इसमें जनसुनवाई करके परियोजना प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की चिंताएं दर्ज की जाती हैं। जनसुनवाई के लिए 30 दिन पहले लोगों को उचित माध्यमों से सूचित करने का प्रावधान है।
चौथा चरण : इसमें पर्यावरण प्रभाव आकलन रपट और जनसुनवाई में उठाए गए मामलों की जीव की जाती है और विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा परियोजना को स्वीकृति या रद्द करने की अनुशंसा की जाती है।

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