इनर लाइन परमिट सिस्टम (ILP) क्या है?

Inner Line Permit

इनर लाइन परमिट (Inner Line Permit) सिस्टम पासपोर्ट की तरह एक यात्रा दस्तावेज़ है। जिसे भारत सरकार भारतीय को जारी करती है जिससे वह किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें। आईएलपी के तहत आने वाले तीन राज्यों को ब्रिटिश राज के काल से ही बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 कानून के तहत संरक्षण प्रदान है। अरुणाचल, नागालैंड और मिजोरम में प्रवेश के लिए भारतीय समेत किसी भी बाहरी नागरिक को आईएलपी की जरूरत होगी। केवल क्षेत्रीय समुदाय ही वहां बस सकते हैं, नौकरी के हकदार हैं और जमीन के मालिक बन सकते हैं।



मणिपुर इन प्रावधानों के बाहर था। लिहाजा, 9 दिसंबर 2019 को केंद्र सरकार ने इसे भी आईएलपी के दायरे में लाने का निर्णय लिया। वही चर्चित नागरिकता संशोधन विधेयक लागू होने के बाद अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई यानी गैर-मुसलमान शरणार्थी भारत की नागरिकता हासिल करके भी असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में किसी तरह की ज़मीन या क़ारोबारी अधिकार हासिल नहीं कर पाएंगे।

आपको बता दे कि औपनिवेशिक भारत में, वर्ष 1873 के बंगाल-ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्यूलेशन एक्ट में ब्रितानी हितों को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया गया था। आज़ादी के बाद भारत सरकार ने कुछ बदलावों के साथ इसे अभी तक कायम रखा है। लेकिन पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम, त्रिपुरा और मेघालय में आईएलपी लागू नहीं है। जिसके लिए वहां बराबर मांग उठती रहती है। साल 2018 में मणिपुर में एक विधेयक पारित किया गया था जिसमें 'गैर-मणिपुरी' और 'बाहरी' लोगों पर राज्य में प्रवेश के लिए कड़े नियमों की बात कही गई थी।

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