1817 का पाइका विद्रोह क्या था?

Paika Rebellion

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की शोषणकारी नीतियों के विरुद्ध वर्ष 1817 में उड़ीसा के पाइका जाति के लोगों द्वारा किया गया एक सशस्त्र, व्यापक तथा संगठित विद्रोह को पाइका विद्रोह के नाम से जाना जाता है। पाइका किसानों का असंगठित सैन्य समूह था, जो युद्ध के समय राजा को सैन्य सेवाएं प्रदान करते थे और बाकी समय में खेती किया करते थे। अपने सैन्य योगदान के कारण इन्हें लगान रहित भूमि प्रदान की जाती थी और कर में छूट दी जाती थीं। इस प्रकार ये उड़ीसा के एक पारस्परिक भूमिगत रक्षक थे, जो योद्धा के रूप में लोगों की सेवा भी किया करते थे। पाइका जाति समूह के लोग भगवान जगन्नाथ को उड़ीसा एकता का प्रतीक मानते थे। ब्रिटिश आधिपत्य के पश्चात् इनकी जमीन को छीन लिया गया। वहीं आर्थिक बदलाव विद्रोह का कारण बना। इस विद्रोह के प्रमुख नेता बक्शी जगबंधु थे।



पाइका विद्रोह के कारण
पाइका विद्रोह के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक कारण थे, किंतु मुख्य रूप से इस विद्रोह को ब्रिटिशों की आर्थिक नीति ने प्रभावित किया, क्योंकि वर्ष 1803 में खुर्दा (उड़ीसा) की हार के बाद पाइकाओं की शक्ति, आर्थिक स्थिति तथा प्रतिष्ठा घटने लगी थी।
अत: कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्न प्रकार हैं– 
– अंग्रेजों द्वारा खुर्दा (उड़ीसा) विजय करने के पश्चात् पाइकाओं की वंशानुगत लगान भूमि हड़प ली गई तथा उन्हें भूमि से विमुख कर दिया गया।
– सरकार की कर्मचारियों द्वारा वसूली जाने वाली राशि ने पाइकाओं की स्थिति को दयनीय कर दिया और उत्पीड़न को बढ़ावा दिया।
– सरकार के आर्थिक सुधार ने नमक की कीमतों में वृद्धि कर दी, जिससे किसान तथा जमींदार सभी लोगों को समान रूप से प्रभावित किया।
– कंपनी ने कीड़ी मुद्रा व्यवस्था को समाप्त कर दिया, जो पूर्व में ​अस्तित्व में थी। अंग्रेजों ने अब चांदी में कर चुकाना शुरु कर दिया, जो विद्रोह के कारण के रूप में उभरा।
– लोगों के असंतोष ने विद्रोह को जन्म दिया, जो मार्च, 1817 में बक्शी जगबंधु के नेतृत्व में व्यापर स्तर पर संपन्न हुआ।
– पाइकाओं ने इसमें ब्रिटिशों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध पद्धति को अपनाया। इस विद्रोह का प्रभाव कम समय में पुर्ल, पीपली तथा कटक तक फैल गया।
इस प्रकार ब्रिटिशों की आर्थिक सुधार नीति ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में पाइका विद्रोह को जन्म दिया।



पाइका विद्रोह का प्रभाव
पाइकाओं के विद्रोह के दमन के पश्चात् अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों को गिरफ्तार किया गया और न्यायाधीश् द्वारा विद्रोहियों को मृत्यु तथा लंबी अवधि के कारावास की सजा सुनाई गई। ब्रिटिश सेना द्वारा विद्रोहियों के लिए खोज अभियान चलाया गया, जिसमें बक्शी जगबंधु को वर्ष 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया। कैद में रहते हुए वर्ष 1829 में इनकी मृत्यु हो गई। कंपनी ने विद्रोह के कारणों की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया। कटक के आयुक्त रॉबर्ट केर द्वारा प्रशासन सुदृढ़ किया गया, जिससे ऐसी घटना दोबारा न घट सके। अंग्रेजों ने उड़ीसा को मद्रास तथा बंगाल प्रेसीडेंसी को जोड़ने वाली भूमि के रूप में चिह्रित किया। अंग्रेजों ने अपनी आर्थिक नीति को जारी रखा, जिसके कारण उड़ीसा में वर्ष 1827 तथा 1835 में भी विद्रोह हुआ। इस प्रकार पाइकाओं के व्रिदोह ने संग्राम का एक मार्ग प्रशस्त किया।


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