अजातशत्रु (Ajatashatru) कौन था?

'अजातशत्रु' (492 ई पू से 461 ई पू) मगध का सम्राट था, जोकि अपने पिता 'बिम्बिसार' को जेल में डालकर सत्ता पर काबिज हुआ था, उसकी मां का नाम वैदेही था उसके बचपन का नाम 'कुणिक' था, अपने शासनकाल के दौरान वह विस्तार की आक्रामक नीति का पालन करता रहा इस तरह वह काशी और कोशल की तरफ उन्मुख हुआ इसकी वजह से मगध और कोशल के बीच लंबे काल तक अशांति विद्यमान रही कोशल राजा ने अजातशत्रु से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और उसे काशी देकर शांति स्थापित की, अजातशत्रु ने वैशाली के लिक्षवियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और वैशाली गणतंत्र पर विजय प्राप्त की यह युद्ध सोलह वर्षों तक जारी रहा।



अजातशत्रु के सुयोग्य मंत्री का नाम वर्षकार था इस की सहायता से अजातशत्रु वर्षकार था इसी की सहायता से अजातशत्रु ने वैशाली पर विजय प्राप्त की। शुरुआत में वह जैन धर्म का अनुयायी था, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म को समर्थन देना शुरु किया वह गौतम बुद्ध से मिला था यह दृश्य भरहुत की मूर्तियों से प्रमाणित है, उसने कई चैत्यों और विहारों का निर्माण करवाया था बुद्ध की मृत्यु के बाद प्रथम बौद्ध परिषद् में वह उपस्थित था अजातशत्रु के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना बुद्ध का महापारिनिर्वाण (464 ई पू) थी, उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृह की पहाड़ी पर स्तूप बनवाया था आगे चलकर (483 ई पू) राजगृह में ही वैभार पर्वत की 'सप्तपर्णि गुहा' से बौद्ध संघ की प्रथम बौद्ध संगीति हुई, जिसमें सुत्तपिटक और विनयपटिका का संपादन हुआ यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ था। गार्गी संहिता के अनुसार अजातशत्रु भी अपने पुत्र उदयिन के षड्यंत्र का शिकार बना।

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