कार्बनिक और अकार्बनिक खाद के बीच का अंतर

कार्बनिक एवं अकार्बनिक खादों में अंतर
(Difference between Organic and Inorganic manure)


कार्बनिक (जीवांश) खादें अकार्बनिक (उर्वरक) खादें
1. इनमें सभी पादपक पोषक तत्व पाये जाते हैं। इनमें प्राय: 1, 2, 3 तत्व पाये जाते हैं।
2. ये आयतन में ज्यादा तथा भारी (Bulky) होते हैं। ये अपेक्षाकृत कम आयतन वाले एवं हल्के अर्थात् Concentrate होते हैं।
3. इनको आसानी से ​फार्म पर तैयार किया जा सकता है जैसे – कम्पोस्ट, गोबर की खाद, हरी खाद इन्हें केवल फैक्ट्री में ही तैयार किया जाता है जैसे – यूरिया आदि।
4. इनकी कीमत कम होती है। ये महंगे होते हैं।
5. इनकी मात्रा खेत में ज्यादा डालनी पड़ती है, क्योंकि इनमें तत्वों की % मात्रा कम होती है। इनमें तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण अपेक्षाकृत कम डालनी पड़ती है।
6. कार्बनिक खादों का प्रभाव भूमि में डालने पर दीर्घकालीन (2-3 वर्ष या अधिक) होता है। इन्हें खेत/फसल में डालने पर एक ही फसल द्वारा या 1 वर्ष में अधिकांश तत्व ग्रहण कर लिए जाते हैं।
7. प्रयोग के बाद ये अवशेष प्रभाव छोड़ते हैं। ये अवशेष प्रभाव नहीं छोड़ते हैं।
8. इनके प्रयोग से भूमि की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशा में सुधार होता है, वायु संचार बढ़ जाता है तथा ताप नियंत्रित रहता है। इनके लगातार प्रयोग से भूमि की दशा खराब होती जाती है तथा फसल का तत्व के प्रति प्रभाव (Crop response to nutrient) घटता है, वायु संचार नहीं बढ़ता तथा ताप नियंत्रित नहीं रहता।
9. अधिक प्रयोग करने पर फसल पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। फसलों में अधिक डालने पर फसल झुलस जाती है।
10. भंडारण में कोई खास सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती। गोदामों में भंडारण करते समय सावधानी रखनी पड़ती है, अन्यथा नमी आने से उर्वरक में ढेले पड़ जाते हैं जैसे – यूरिया, डी ए पी में।
11. इनका प्रयोग फसल की बुवाई से 1-1.5 माह पूर्व करना पड़ता है। इन्हें बुवाई पर (P, व K उर्वरक) तथा खड़ी फसल में टॉप ड्रैसिंग अथवा पर्णीय छिड़काव में दे सकते हैं।
12. भूमि में सड़ने पर कार्बनिक अम्ल छोड़ते हैं जो अन्य तत्वों की घुलनशीलता बढ़ाता है। ऐसा नहीं होता।
13. भूमि की जल सोखने व धारण क्षमता में वृद्धि होती है। ऐसा नहीं होता।
14. जीवाणुओं की वृद्धि में मदद करते हैं। ऐसा नहीं होता।
15. C/N ratio सन्तुलित रहता है। C/N ratio बिगड़ता है।

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