सांसद निधि और विधायक निधि क्या होती है?

sansad nidhi aur vidhayak nidhi

सांसद निधि योजना की शुरूआत 23 दिसंबर, 1993 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में हुई थी। केंद्र सरकार द्वारा संचालित इस योजना में सांसदों (लोकसभा, राज्यसभा और मनोनीत) को अपने निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य कराने के लिए प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता दी जाती है।


वर्ष 1993-94 में, जब यह योजना शुरू की गई थी, तो सांसद निधि मात्र पांच लाख रुपये प्रति सांसद थी, लेकिन 1998-99 में इस राशि को बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दिया गया और वर्तमान में इस योजना के तहत प्रति वर्ष पांच करोड़ रुपये की राशि दी जाती है। फरवरी, 1994 तक सांसद निधि योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय के नियंत्रण में थी, लेकिन अक्टूबर, 1994 में इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यानवयन मंत्रालय को दे दिया गया। यह राशि सांसदों के खाते में नहीं, संबंधित जिले के जिलाधिकारी के खाते में 2.5 करोड़ रुपये की दो किस्तों में भेजी जाती है। सांसद, जिलाधिकारी को बताता है कि उसे कहां कहां इस राशि को उपयोग करना है।

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इस राशि को सांसद अपने क्षेत्र में स्थानीय लोगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सार्वजनिक हित के कार्यों जैसे शिक्षा, पेयजल, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सड़क, पुस्तकालय निर्माण आदि में खर्च करता है। इससे मुख्य रूप से टिकाऊ संपत्तियों का निर्माण कराया जाता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 16वीं लोकसभा के 543 में से केवल 35 सांसद ही उन्हें पांच वर्षों में आवंटित 25 करोड़ रुपयों की निधि पूरी खर्च कर सके हैं।


सांसद निधि योजना की तर्ज पर राज्यों में भी विधायक निधि की व्यवस्था है। इसमें भी हर विधायक को प्रति वर्ष विकास निधि के रूप में एक नियत राशि मिलती है। जिसका प्रयोग विधायक को अपने क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए करना होता है। लेकिन विधायक निधि राशि हर राज्यों में अलग अलग है। क्यूंकि वहां की राज्य सरकारें इसका निर्धारण करती है। जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 27 मार्च 2018 को विधायक निधि की राशि 50 लाख और बढ़ाकर 2 करोड़ रुपये कर दी थी। साथ ही यह राशि जीएसटी से मुक्त भी कर दी जिसकी प्रतिपूर्ति उत्तर प्रदेश सरकार करती है। इसी तरह मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 1 मार्च 2016 को विधायक निधि& 77 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 करोड़ कर दी थी।

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