संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) - संरचना, अध्यक्ष व कार्य

Union Public Service Commission
संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission) – संघ लोक सेवा आयोग भारत में केंद्रीय भर्ती अभिकरण है। यह एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्थान है। जिसके कार्यों और शक्तियों का विवरण संविधान के 14वें भाग में अनु. 315 से 323 में किया गया है। इसका संबंध अखिल भारतीय सेवाओं और केन्द्रीय सेवाओं और केन्द्रीय सेवाओं हेतु ग्रुप ए और ग्रुप बी के अधिकारियों की भर्ती से संबंधित अनुशंसा करने से है। इसके अतिरिक्त यह सरकार द्वारा मांगे जाने पर प्रोन्नति और अनुशासनात्मक मामलों में परामर्श देती है।

यूपीएससी की संरचना और नियुक्ति
भारत के राष्ट्रपति द्वारा UPSC में एक अध्यक्ष और अन्य सदस्यों सकी नियुक्ति की जाती है। संविधान ने आयोग के सदस्यों की संख्या को निर्दिष्ट नहीं किया है और इसे राष्ट्रपति के विवेकाधीन रखा गया है। सामान्तया आयोग में एक अध्यक्ष एवं 9 से 11 सदस्य होते हैं। आयोग के सदस्यों के लिए कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं की गई है सिवाय इसके कि आयोग के आधे सदस्यों ने 10 वर्षों तक भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कार्य किया हो। संविधान द्वारा राष्ट्रपति के आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा-शर्तों का निर्धारण करने के लिए अधिकृत किया गया है। अध्यक्ष और सदस्य 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले पूरो हो) तक अपने पदद पर बने रहते हैं।

संघ लोक सेवा आयोग की स्वतंत्रता
विभिन्न सरकारी पदों पर भर्ती करते समय UPSC एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है। इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए संविधान द्वारा निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं –



1. आयोग के अध्यक्ष या किसी सदस्य को संविधान में उल्लिखित तरीके से ही राष्ट्रपति द्वारा पदमुक्त किया जा सकता है। वे परिस्थितियां जिनके तहत इन सदस्यों को पद से हटाया जा सकता है,
निम्नलिखित हैं –
(a) यदि उसे दिवालिया घोषित ​कर दिया जाता है,
(b) यदि वह कोई लाभ का पद धारण करता है,
(c) यदि वह मानसिक और शारीरिक असक्षमता के कारण पद पर बने रहने योग्य नहीं है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार के आधार पर भी पद जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पास प्रेषित करे। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिया गया परामर्श राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होता है। इस प्रावधान के द्वारा UPSC के सदस्यों को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की गयी है।

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2. यद्यपि अध्यक्ष और सदस्यों के सेवा की शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है किंतु नियुक्ति के पश्चात इसमें कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

3. UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन सहित सभी व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होते हें। इस प्राकार उन पर संसद में मतदान नहीं किया जा सकता।

4. संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष अपने कार्यकाल के बाद भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी और नियोजन का पात्र नहीं होता है।

5. UPSC का कोई सदस्य (कार्यकाल के बाद) संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा। किंतु वह भारत सरकार या किसी राज्य

सरकार के अधीन नियोजन का पात्र नहीं होगा।
6. UPSC के अध्यक्ष या सदस्यी उसी पद पर पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होते हैं।

यूपीएससी के कार्य और उत्तरदायित्व
1. प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से अखिल भारतीय सेवाओं और सघ के अधीन विभिन्न पदों के लिए भर्तियां करवाना।
2. नियुक्ति के लिए अधिकारियों की उपयुक्तता के साथ-साथ पदोन्नति और प्रतिनियुक्ति हेतू स्थानांतरण के संबंध में सलाह देना।
3. यह दो या अधिक राज्यों के अनुबंध पर ऐस ​किसी सेवा के लिए संयुक्त भर्ती योजनाओं की रूपरेखा का निर्माण और उसके परिचालन में राज्यों की सहायता करता है, जिसमें उम्मीदवारों के लिए विशेष योग्यता रखना आवश्यक हो।
4. विभिन्न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनात्मक मामले।
5. पेंशन, कानूनी खर्च की प्रतिपूर्ति, आदि के दावे से संबंधित विविध मामले।
उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था की है कि यदि सरकार उपर्युक्त मामलों में संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श लेने में विफल रहती है, तो असंतुष्ट लोक सेवक की समस्या का ​निवारण न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार ये प्रावधान केवल निर्देश हैं न कि अनिवार्य।

इन कार्यो के अतिरिक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अधिकार क्षेत्र को संसद द्वारा बढ़ाया जा सकता है। संघ लोक सेवा आयोग राष्ट्रपति के पास अपने कार्यों से संबंधित वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है जिसे राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत कराता हे। इस तरह की रिपोर्ट के साथ-साथ सरकार को भी आयोग के सलाह को स्वीकृत न करने की दशा में स्पष्टीकरण देते हुए एक ज्ञापन प्रस्तुत करना होता है। इसके अलावा, ऐसी किसी गैर स्वीकृत रिपोर्ट को केंद्रीय मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। ध्यातव्य है कि इस परिप्रेक्ष्य में किसी मंत्रालय और विभाग को UPSC की सलाह को अस्वीकार करने की शक्ति नहीं है।

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