हिन्दुओं के चार प्रमुख त्योहार माने जाते हैं-दशहरा, होली, दीपावली और रक्षाबन्धन। इसमें होली मस्ती और प्रसन्नता का त्योहार है। यह त्योहार सारे देश में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। सभी जातियों के लोग इसे बड़ी प्रसन्नातापूर्वक मनाते हैं। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन किसी बड़े चौक में ईंधन का ढेर लगा दिया जाता है। रात्रि में इसका पूजन होता है और इसमें आग लगा दी जाती है। सभी लोग इस आग में जौ की बालिया भूनते हैं आर एक दूसरे से गले मिलते है। होली जलने के दूसरे दिल होली खेली जाती है। सुबह से ही चारों ओर रंग की फुहारें उड़ने लगती है। लाल गुलाल से सबसे मुँह रँग दिए जाते हैं। सुबह से ही चारों ओर व्यक्ति एक-दूसरे पर रंग डालते हैं और प्रेम से एक-दूसरे से गले मिलते हैं। दोपहर को लगभग दो बजे तक यही कार्यक्रम चलता रहता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर बाहर निकलते हैं और सारा दिन बड़ी हँसी-खुशी के साथ व्यतीत करते हैं।
होली के त्योहार के सम्बन्ध में अनेक कहानियाँ कही जाती है। कुछ लोगो के अनुसार इसी दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भक्त प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी किन्तु भगवान की कृपा से प्रहृलाद बच गया और होलिका जल गई। इसी स्मृति में आज भी होली जलाई जाती है। कुछ भी हो, यह त्योहार हँसी-खुशी में भरपूर होता है। होली का त्योहार आज जिस ढंग से मनाया जाता है, उसमें सुधारों की भी आवश्यकता है। हमें होली इस प्रकार खेलनी चाहिए जिससे दूसरों को भी प्रसन्नता हो। किसी को भी दु:ख नहीं होना चाहिए। होली में ईंधन के लिए किसी के भी साथ हठ नहीं करनी चाहिए। बहुत से व्यक्ति रंग के स्थान पर कीचड़ मिट्टी आदि का प्रयोग करते है, इससे हानि होती है, ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। अत: इनसे बचना चाहिए तथा अपने इस त्योहार को हँसी-खुशी के साथ मनाना चाहिए। वास्तव में होली के त्योहार का बहुत महत्व है। यह त्योहार एकता और भाई-चारे को बढ़ाने वाला है। अत, हमें इसे इसी रूप में मनाना चाहिए तथा प्रेमपूर्वक एक दूसरे से मिलना चाहिए।
0 Comments