गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय - Aryabhatta Biography in Hindi

Aryabhatta Biography in Hindi

जन्म:
476 ई. कुसुमपुर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना, बिहार)
मृत्यु: 550 ई.
कार्य: गणितज्ञ, खगोलशास्त्री


आर्यभट्ट (Aryabhata) का जन्म 476 ई. में बिहार के मगध, (आधुनिक पटना) के पाटलिपुत्र में हुआ था। वह भारतीय गणितज्ञ और भारतीय खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग के महान गणितज्ञ-खगोलशास्त्री थे। उन्होंने हिंदू और बौद्ध परंपरा दोनों का अध्ययन किया। आर्यभट्ट अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय में आए थे। उस समय नालंदा शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र था। जब उनकी पुस्तक 'आर्यभटीय' (गणित की पुस्तक) को एक उत्कृष्ट रचना मान लिया गया तो तत्कालीन गुप्त शासक बुद्धगुप्त ने उन्हें विश्वविद्यालय का प्रधान बना दिया। आर्यभट्ट ने बिहार के तारेगना में सूर्य मंदिर में एक वेधशाला भी स्थापित की।

आर्यभट्ट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रंथों से मिलती है। जिसके अनुसार आर्यभट्ट प्रथम ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि पृथ्वी गोल है और वह अपनी धुरी पर घूमती है जिससे दिन और रात उत्पन्न होते हैं। उन्होंने घोषणा की कि चाँद पर अंधेरा है और वह सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के बारे में उनका विश्वास था कि यह राहु के सूर्य या चंद्र को हड़पने से नहीं होता जैसा कि हिंदू पौराणिक कथाओं में आता है, बल्कि पृथ्वी और चाँद की छायाओं के कारण होता है। वह ब्रह्मांड की भूकेंद्रीय अवधारणा में विश्वास करते थे कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है। ग्रहों की अनिश्चित या अनियमित गति को समझाने के लिए उन्होंने यूनानी राजा टॉलमी की तरह अधिचक्र (ऐपी साइकल) का उपयोग किया। लेकिन इनका तरीका टॉलमी से अधिक अच्छा था।

गणित में भी आर्यभट्ट का योगदान समान महत्व रखता है। उन्होंने गणित के क्षेत्र में महान आर्किमिडीज़ से भी अधिक सटीक ‘पाई’ का मान 3.1416 बताया और पहली बार कहा कि यह सन्निकटमान है। और वही पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने ज्या सारणी (Table of Sines) दी। उनकी अनिर्धारित समीकरण (इनडिटरमीनेट इक्वेशन) की हल पद्धति जैसे ए एक्स-बी वाई-सी आज पूरी दूनिया के गणित के छात्र और ज्ञाता जानते हैं। उन्होंने बड़ी संख्याओं जैसे 100,000,000,000 को शब्दों में लिखने का नयी तरीका उत्पन्न किया था। वह बड़ी बड़ी संख्याओं को कविता की भाषा में व्यक्त करते थे।

Read in English: Aryabhatta Great Mathematician Short Biography

आर्यभट्ट कि गणना के अनुसार पृथ्वी की परिधि 39,968.0582 किलोमीटर है, जो इसके वास्तविक मान 40,075.0167 किलोमीटर से केवल 0.2% कम है। अपने ग्रंथ आर्यभटीय में उन्होंने गणित तथा खगोल शास्त्र की गणना के दूसरे पहलुओं पर भी जैसे रेखा गणित, विस्तार कलन (मैन्सूरेशन), वर्गमूल (स्क्वायर रूट), घनमूल (क्यूब रूट), श्रेणी (प्रोग्रेशन) और खगोलीय आकृतियों पर भी प्रकाश डाला। आर्यभटीय में कुल 108 छंद है, साथ ही परिचयात्मक 13 अतिरिक्त हैं। यह चार पदों अथवा अध्यायों में विभाजित है–

1. गीतिकपाद
2. गणितपाद
3. कालक्रियापाद
4. गोलपाद
5. आर्य-सिद्धांत



अपनी वृद्धावस्था में आर्यभट्ट ने एक और पुस्तक 'आर्यभट्ट सिद्धात' के नाम से लिखी। यह दैनिक खगोलीय गणना और अनुष्ठानों के लिए शुभ मुहूर्त निश्चित करने के काम आती थी। आज भी पंचांग बनाने के लिए आर्यभट्ट की खगोलीय गणनाओं का उपयोग किया जाता है। गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्रों में उनके योगदान की स्मृति में ही भारत के पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया है।

आर्यभट्ट का निधन 550 ई.पू. में 74 वर्ष की आयु में हुआ। लेकिन उनके जीवन की अंतिम अवधि और ठिकाने के सटीक स्थान अभी भी दुनिया के लिए अज्ञात हैं।


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