संख्यावाचक शब्द सूची हिंदी में

Sankhya Vachak Shabd in Hindi
विशेष अर्थों में प्रयुक्त होने वाले संख्यावाचक शब्द (Sankhya Vachak Shabd) की सूची हम यहां आपके लिए उपलब्ध करा रहे है। सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य हिंदी का विशेष स्थान है। इसके बिना परीक्षाओं में सफलता पाना असंभव ही है। आईएएस, पीसीएस, एसएससी, बी.एड, सब इंस्पेक्टर, बैंक परीक्षाओं सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए संख्यावाचक शब्द की सूची का अच्छी तरह अध्ययन कर लेना जरूरी है।



शून्य
– आकाश, अन्तरिक्ष, दर्शन में अनन्तबोधक, गणिक की एक महत्वपूर्ण संख्या
एक – ईश्वर, बह्रा सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, शुक्राचार्य की आँख, गणेश जी का दाँत
दो अयन – उत्तरायन, दक्षिणायन
दो उपासना – सगुण, निर्गुण
दो पक्ष – कृष्ण-पक्ष, शुक्ल-पक्ष
दो फल – जीव, ब्रह्रा
दो मार्ग – प्रवृत्ति, निवृत्ति
दो विद्या – परा, अपरा
तीन अग्नि – बड़वाग्नि, जठराग्नि, दावाग्नि
तीन कर्म – संचित, प्रारब्ध क्रियामाण
तीन काल – भूत, वर्तमान, भविष्य
तीन क्रिया – शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक
तीन गुण – सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण
तीन जीव – जलचर, थलचर, नभचर
तीन दु:ख – दैविक, दैहिक, भौतिक
तीन देव (त्रिदेव) – ब्रह्मा, विष्णु, महेश
तीन दोष – वात, वित्त, कफ
तीन धार्मिक अंग – विद्या, दान, यज्ञ
तीन राम – परशुराम, राम, बलराम
तीन ऋण – पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण
तीन लोक – आकाश, पाताल, मृत्यु-लोक (पृथ्वी लोक)
तीन प्रकार की वायु – शीतल, मन्द, सुगन्धित
तीन वैदिक काण्ड – ज्ञान, कर्म, उपासना
तीन शरीर – सूक्ष्म, स्थूल, कारण-रूप
तीन शारीरिक अवस्थाएँ – बाल्यवस्था, यौवनावस्था, वृद्धावस्था
तीन प्रकार के जीव – मुक्त, मुमुक्ष, विषयी
तीन बल – तन, मन, धन
तीन दिव्य पदार्थ – ब्रह्रा, जीव, प्रकृति
तीन काण्ड – ज्ञान, कर्म, उपासना
तीन ताप (दु:ख) – दैहिक, दैविक, भौतिक
चार अवस्थाएँ – जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीन
चार आश्रम – ब्रह्राचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास
चार दिशाएँ – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण
चतुर्मास (चौमासा) – आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन
चार आभूषण – शंख, चक्र, गदा, पघ
चार नायिकाएँ – पद्विनी, चित्रणी शंखनी, हस्तिनी
चार धाम – जगन्नाथ, रामेश्वर द्वारिका (द्वारका भी शुद्ध है), बद्रीनाथ
चार नीति के उपाय – साम, दाम, दण्ड, भेद
चार अनुमान – प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द, उपमान
चार प्रकार के भक्त – दु:खी, जिज्ञासा, अर्थार्थी, ज्ञार्नी
चार योनियाँ – अण्डज, स्वेदज, उद्भिज, जरायुज
चार मत – वैष्ण, शैव, शाक्त, वेदान्त
चार सेना के अंग – गजचर (हाथी), अश्वचर (घोड़ा), रथचर (रथ), पदच्चर (पैदल)
चार शत्रु – काम, क्रोध, मद, मोह
चार फल – अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष
चार पुरुषार्थ – ज्ञान, भक्ति, कर्म, वैराग्य
चार युग – सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग
चार वर्ण – ब्राह्राण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र
चार ब्राह्राण – शतपथ, गोपथ, ऐतरेय, सार्त्त
चार वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अर्थर्ववेद
चार उपवेद – आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, स्थापत्यवेद
चार मुक्ति के प्रकार – सालोक्य, सामीप्य, सायुज्य, सादृश्य
पत्र्च तत्व – पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश
पत्र्च कोष – अत्रमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय
पत्र्च प्राण – प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ – आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा
पत्र्च गंगा – गंगा, यमुना, सरस्वती, किरणा, धूतपापा
पत्र्च महायज्ञ – संध्या, पितृयज्ञ, अग्निहोत्र, बलि, वैश्व दैव (अतिथि-पूजन)
पत्र्च अमृत – दूध, दही, घी, शक्कर, शहद
पाँच विद्यार्थीगत लक्षण – काक-चेष्टा, वकोध्यान, स्वान-निद्रा, अल्पहार, गृहत्याग
पच्च यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्राचर्य, इन्द्रिय—निग्रह
पाँच शत्रु – काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ
पाँच पिता – जनक, उपनेता, श्वसुर, अत्रदाता, भयाग्रता
पाँच माताएँ – जननी, आचार्य-पत्नी, सास, राजपत्नी, जन्मभूमि
पाँच देव – विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य, दुर्गा
पच्चगव्य – दुग्ध, दधि, घृत, गोबर, मूत्र
पत्र्चरत्न – सुवर्ण, मोती, हीरा, लाल, नीलम
पाँच नियम – शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान
पाँच मकार – मदिरा, मत्स्य, मैथुन, मंत्र, मुद्रा
पाँच कर्म – आकुंचन, प्रसारण, नमन, अवक्षेपण, उत्प्रेक्षण
पाँच क्लेष – राग, द्वेष, अविधा, अहंकार, अग्निवेश
पाँच वाण कामदेव के – मोहित, मस्त, तपन, शुष्क, शिधित
छ: शत्रु – काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, मत्सर
छ: ऋतुएँ – वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर
छ: दर्शन (षड्दर्शन) – न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग, वेदान्त, मीमांसा
छ: रस – मधुर, लवण, तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल
छ: वेदांग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष
छ: इतियाँ – अतिविृष्टि, अनावृष्टि, शलभ, मूषक, राजाक्रमण, खगवृन्द
छ: दु:ख – गर्भदु:ख, जन्म–दु:ख, रोग, जरा, क्षुधा, मरण
छ: जीवीय गुण – इच्छा, द्वेष, ज्ञान, प्रयत्न, सुख, दु:ख
सप्त ऋषि – कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, वशिष्ठ, जमदग्नि
सप्त द्वीप – जम्बू, शाक, कुश, कोत्र्च, शाल्मली, गोमेद, पुष्कर
सप्त-स्वर – षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पत्र्चम, धैवत, निषाद, (सा,रे,ग,म,प,ध,नि)

सप्त सागर – लवण, इक्षु, दधि, क्षीर, मधु, मदिरा, घृत
सप्त स्वर्ग – भू, भुव:, स्व:, मह:, जल:, तप:, सत्य
सप्त पाताल – अतल, सुतल, तलातल, वितल, महातल, रसातल, पाताल
सप्त धातु – रस, रक्त, माँस, मेद, धातुएँ, मज्जा, शुक्र, (वैद्यक के अनुसार)
सात विद्यानाशक – निद्रा, आलस्य, स्वाद, सुख, काम, चिन्ता, केलि
सात सुख – खान, पान, परिधान, ज्ञान, गान, शोभा, संयोग
सात राजसी अंग – मन्त्री, शस्त्र, घोड़ा, हाथी, देश, कोष, दुर्ग
सात रंग – लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी, बैंगनी
सात वार – सोम, मंगल, बुद्ध, गुरु, शुक्र, शनि, रवि
अष्ट सिद्धियाँ – अणिमा, महिमा, गरिमा, लद्यिमा, प्राप्ति, आकाम्य, ईशत्व, वशिव्त
अष्ट छाप केकवि – (वल्लभ-सम्प्रदाय) सूरदा, कृष्णदास, परमानन्द, कुम्भदास, चतुर्भुज, नन्ददास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी
अष्टाड् प्रणाम – उर, सिर, जानु, भुजा, हस्त, चरण, मन, वचन
अष्ट धातु – लोहा, जस्ता, ताँबा, सोना, चाँदी, राँगा, सीसा, पारा
आठ मूर्खणा लक्षण – साहस, अन्त, चपलता, माया, भय, अविवेक, अशोच, अदाया
आठ विवाह – ब्राह्मण, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस, पैशाच
आठ वसु – सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, कुबेर
आठ प्रहर – (दिन के चार प्रहर) पूवाह्र, मध्याह्र, अपराह्र, सायं, (रात्रि के चार प्रहर) प्रदोष, निशीथ, त्रियामा, ऊष्मा
आठ अंग (यौगिक) – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
आठ अवस्था – कौमार, पौगण्ड, कैशोर, यौवन, बाल, तरुण, वृद्ध, वर्षीयान
नव ग्रह – सोम, मंगल, बुद्ध, गुरु, शुक्र, शनि, अरुण, वरुण, यम
नव निधि – पद्य, महायज्ञ, शंख, मकर, पाद-कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्व
नव भक्ति – श्रवण, कीर्तन, स्मरण, अर्चन, वन्दन, दास्य साख्य, आत्मनिवेदन, पादसेवन
नव रस – श्रृडांर, करुण, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, शान्त, अद्भुत
नव रत्न – (विक्रम सभा) धन्वतरि, क्षपणक, अमरसिंह, बैताल, शंकु, वाराहमिहिर, घटखर्पर, कालिदास, वररुचि
नव रत्न – मोती, पन्ना, माणिक, गोमेद, हीरा, मूंगा, वैदर्य (लह सुनिया), पद्यराग, नीलम
नव द्रव्य – पृथ्वी, जल, तेल, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन
नव दुर्गा – शैलपुत्री, ब्रह्राचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री, दुर्गा
नव गुण (ब्राह्राण के) – शुचि, तपस्वी, सन्तुष्ट, सत्यवक्ता, शीलवाहन, दृढ़प्रतिज्ञ, धर्मात्मा, दयालु, दाता
दस धर्म के लक्षण – धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय-निग्रह, धी, विद्या, सत्य, अक्रोध
दस अवतार – मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि
दस सन्यासी – तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, पर्वत, सागर, सरस्वती, भारतीय, पुरी
दस दिशाएँ – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैऋत्य, वायव्य, आग्नेय, आकाश, पाताल।
दस दिग्पाल – गरुणध्वज, गोविन्द, अग्नि, पवन, ईश, राक्षस, यक्ष, सुरपति, धनद, वरुण
दस रुद्र – प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कूर्म, कृकट, देवदत्त, धनन्जय
दस उपनिषद् – ईश, केन, कठ, प्रश्न, मण्डुक्य, ऐतरेय, छान्दोग्य, तैत्तिरीय, वृहदारण्यक, माण्डुक्य
बारह राशियाँ – मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुम्भ, मीन
बारह भूषण – नूपुर, किंकिणी, हार, नथ, चूड़ी, अँगूठी, शीशफूल, बेंदी, कंगन, कण्ठश्री, बाजुबन्द, टीका
बारह कलाएँ सूर्य की – धूम्न, मारीची, तपिनी, तापिनी, ज्वालिनी, रुचि, सुषुम्ण, भुवनलोक, स्वर्गलोक, महालोक, अवलोक, तललोक, सत्यलोक
चौदह विद्या – ब्रह्मज्ञान, रसायन, श्रुति, वैद्यक, ज्योतिष, व्याकरण, धनुर्विद्या, जलतरंग, संगीत, नाटक, घुड़सवारी, कोकशास्त्र, चोरी, चांतुय्र
चौदह रत्न – श्री, रम्भा, विष, वारुणी, अमृत, शंख, ऐरावत, धनुष, धन्वन्तरि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, उच्चैश्रवा, कौस्तुभमणि
पन्द्रह तिथि – प्रतिपदा से पूर्णिमा तक अथवा अमास्वया तक
सोलह श्रृंगार – अंगशौच, उबटन, स्नान, केशबन्धन, अंड्रराग, अत्र्जन, महावर, दन्तरत्र्जन, ताम्बूल, वसन, भूषण, सुगन्धि, पुष्पाहार, कुंकुम, भालतिलक, चिबुकबिन्दु
सोलह कलाएँ – अमृता, मानदा, पूषा, तुष्टि, पुष्टि, रति, धृति, शशिनी, चन्द्रिका, कान्ति, ज्योत्स्ना, श्री, प्रीति, अड्दा, पूर्वा, पूर्णमृता
सोलह संस्कार (षोड्श संस्कार) – गर्भाधान, पुंसवन, सीमान्तोन्यन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अत्रपाशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, वेदारम्भ, समानवत्र्तन, विवाह, वानप्रस्थ, संन्यास, देहान्त
षोड्शोपचार पूजाविधि – आवाहन, स्थापन, पाद्य, सिंहासन, अर्घ्य, आचमन, स्नान, चन्दन, फूल, दीप, धूप, नैवेद्य, ताम्बूल, प्रदक्षिणा, नमस्कार, आरती
अट्ठारह पुराण – ब्रह्रा, पद्य, विष्णु, शिव, भागवत, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्रावैवर्त्त, लिंग, वाराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, ब्रह्माण्ड
चौबीस अवतार – सनत्कुमार, वाराह, नारद, नरनारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञपुरुष, ऋषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, व्यास, हंस, हयग्रीव, हरि, बुद्ध, कल्कि
सत्ताइस नक्षत्र – अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्प, श्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा



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