जानिए, कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान व रोहिंग्या संकट को


चीन में 9वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (9th BRICS Summit) में हिस्सा लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिवसीय दौरे पर 05 से 07 सितंबर, 2017 के बीच म्यांमार का दौरा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यांमार के दौरे में दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत करने पर बल दिया है। प्रधानमंत्री के अनुसार म्यांमार की आंतरिक हालात से भारत चिंति​त है और इस मामले को शांति से हल करने की जरूरत है। इसके लिए भारत म्यामांर की हर संभव मदद करने को तैयार हे, जिससे वहां शांति व्यवस्था स्थापित हो सके।


म्यांमार में रोहिंग्या संकट
● यह विवाद रोहिंग्या मुसलमानों के एक हथियारबंद संगठन द्वारा सुरक्षा बलों पर 25 अगस्त, 2017 को किए गए हमले से शुरू हुआ। जबकि रोहिंग्या मुसलमानों का कहना है कि कई गांवों में सेना ने निहत्थे लोगों पर गोली चलाई, जिसके बाद से यह विवाद चालू हुआ।
● म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हो रही हिंसा में अब तक लगभग 400 लोग मारे जा चुके हैं।
● इस बीच, म्यामांर के उत्तरी प्रांत राखिन में मानवीय संकट को कम करने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों ने एक महीने के एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की है।
● अराकान रोहिंग्या मुक्ति सेना-अरसा ने कहा कि यह संघर्ष विराम 10 सितंबर, 2017 से ही लागू हो रहा है।
● अरसा ने म्यामांर की सेना से भी अपने हथियार त्याग देने की अपील की है।

कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
● रोहिंग्या मुसलमान अरब और फारसी व्यापारियों के वंशज हैं।
● रोहिंग्या मुसलमान सुन्नी इस्लाम को मानते हैं और रुथेन्गा भाषा बोलते हैं।
● इन्हें आधिकारिक रूप से देश के 135 जातीय समूहों में शामिल नहीं किया गया है।
● 1982 में म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता भी छीन ली, जिसके बाद से वे बिना ​नागरिकता के (स्टेटलेस) जीवन बिता रहे हैं।

क्या हुआ असर
● लगभग ग्यारह लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार में रहते हैं। इस हिंसा में सैकड़ो लोग मारे गए।
● इनमें से बांग्लादेश में सबसे ज्यादा लगभग 2.70 लाख रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी के रूप में शरण ले चुके हैं।

म्यांमार के महत्वपूर्ण तथ्य
● म्यांमार का पुराना नाम बर्मा था।
● नायप्यीडॉ इसकी राजधानी है।
● म्यांमार की पुरानी राजधानी यांगून (रंगून) थी।
● म्यांमार को ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता 04 जनवरी, 1948 को मिली थी।
● यहां की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, इसके अलावा यहा हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग भी निवास करते हैं।
● मुगल राजवंश के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने सन 1862 में यहीं (यांगून) पर दफनाया था।