जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 स्थाई है: हाईकोर्ट


अनुच्छेद 370 को लेकर जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान का अनुच्छेद 370 स्थायी है इसलिए इसमें संशोधन या फिर इसे रद्द करना या हटाया जाना संभव नहीं है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35ए राज्य में लागू मौजूदा कानूनों को सुरक्षा प्रदान करता है।

जस्टिस हसनैन मसूदी और जनक राज कोतवाल की डिवीजन पीठ ने अपने 60 पेज के फैसले में कहा कि अस्थायी प्रावधान के शीर्षक के तौर पर और पैरा 21 में अस्थायी, परिवर्तनकारी एवं विशेष प्रावधानों के शीर्षक से शामिल किया गया अनुच्छेद 370 संविधान में स्थायी जगह ले चुका है। पीठ ने कहा कि इस अनुच्छेद को संशोधित नहीं किया जा सकता, हटाया नहीं जा सकता या रद्द भी नहीं किया जा सकता क्योंकि देश की संविधान सभा ने उसे भंग किए जाने से पहले इस अनुच्छेद को संशोधित करने या हटाए जाने की अनुशंसा नहीं की थी।

हाईकोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत के दूसरे राज्यों की तरह नहीं है। इसे सीमित संप्रभुता हासिल है। इसलिए इसे विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। यह अनुच्छेद राज्य को विशेष दर्जा सुनिश्चित करता है। इसके अलावा सिर्फ अनुच्छेद 370(1) है जो राज्य पर लागू होता है। पीठ ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 370(1) के तहत राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह संविधान के किसी भी प्रावधान को राज्य में लागू कर सकते हैं।

क्या है अनुच्छेद 370?
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को एक विशेष राज्य बनाती है इस अनुच्छेद का खाका जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था। शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और महाराजा हरि सिंह ने राज्य का वजीर-ए-आजम नियुक्त किया था। उस समय शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में न किया जाए। उन्होंने राज्य के लिए कभी न टूटने वाली, 'लोहे की तरह स्वायत्तता' की मांग की थी हालांकि उनकी यह मांग केंद्र सरकार ने ठुकरा दी थी।

ऐसे अस्तित्व में आया अनुच्छेद 370
भारत की स्वतंत्रता के समय जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था। ऐसी स्थिति में जम्मू-कश्मीर के पास या तो भारत में विलय का विकल्प था या फिर पाकिस्तान में। राज्य के राजा हरि सिंह भारत की तरफ झुकाव रखते थे, जबकि यहां की जनता पाकिस्तान में विलय की पक्षधर थी। ऐसे में हरि सिंह ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बातचीत करके 'इंस्ट्रूमेंट आॅफ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद ही भारतीय संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया।

आप भी जानिये धारा 370
● जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
● जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
● जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्षों का ही होता है।
● जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता।
● भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं।
● भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के संबंध में अत्यंत ​सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
● जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह करले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी, इसके विपरीत यदि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह करले तो उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेंगी।
● धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई लागू नहीं है और सीएजी लागू नहीं होता भारत का कोई भी कानून लागू नहीं होता।
● कश्मीर में महिलाओं पर शरीया कानून लागू है।
● कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं हैं।
● कश्मीर में चपरासी को 2500 ही मिलते हैं
● कश्मीर में अल्पसंख्यकों (हिन्दु-सिख) को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
● धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।
● धारा 370 की वजह से पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है इसके लिए पाकिस्तानियों को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।


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