2015 रसायन का नोबेल तीन वैज्ञानिकों को


साल 2015 का रसायन शास्त्र नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों टॉमस लिंडाल, पॉल मॉडरिश और अज़ीज सैंकर को दिया जाएगा। उन्हें ये पुरस्कार डीएनए की मरम्मत पर उनके अध्ययन के लिए दिया जा रहा है।

विजेताओं का चयन करने वाली नोबेल कमेटी ने कहा कि तीनों ने अस्वस्थता पैदा करने वाले तथा बुढ़ापा बढ़ाने में भूमिका निभाने वाले DNA के उत्परिवर्तन को शरीर द्वारा दुरस्त करने की प्रक्रिया पर नई जानकारी सामने लाकर चिकित्सा क्षेत्र में चकित कर देने वाला रास्ता खोला है।

इन वैज्ञानिकों के अध्ययन ने इस बात को भी समझने में मदद की कि कैंसर जैसी परिस्थितियों में स्थिति किस तरह बिगड़ सकती है। इन वैज्ञानिकों ने बताया कि कोशिकाएं किस तरह क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत करती हैं।

DNA (डिऑक्सिरिबो न्यूक्लियक एसिड) जीवन के निर्माण और उसके चलने का रासायनिक कोड होता है। कड़ी धूप या अन्य पर्यावरण संबंधी कारकों से DNA को नुकसान पहुंच सकता है। लेकिन प्रोटीनों का एक सम्मुचय होता है जो प्रक्रिया पर निगरानी रखने के लिए तैयार किया जाता है। यह कोड को पढ़ता है और हुए नुकसान की भरपाई करता है।

1970 तक यह समझा जाता था कि डीएनए हमेशा स्थिर रहता है। लेकिन स्वीडिश वैज्ञानिक लिंडाल ने साबित किया है कि डीएनए तेजी से विघटित होता है।

स्वीडन के थोमास लिंडाल, अमेरिका के पॉल मॉडरिश और अमेरिकी तुर्क वैज्ञानिक अजीज सैंकर के नाम का एलान करते हुए रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेस ने कहा, इस जानकारी की मदद से कैंसर का नया इलाज खोजा जा सकता है।

अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से जुड़े सैंकर ने कोशिकाओं के डीएनए मरम्मत को सिद्धांत को बूझा। उन्होंने ऐसा तंत्र बनाया जिससे पता चला कि कोशिकाएं कैसे पराबैंगनी प्रकाश से क्षतिग्रस्त हुए डीएनए को दुरुस्त करती हैं।

तीसरे वैज्ञानिक मॉडरिश ने यह साबित किया कि कोशिकाएं कैसे विभाजन के दौरान होने वाली गलतियों को सुधारती हैं। विभाजन के दौरान बनने वाली नई कोशिकाओं में भी डीएनए होता है, लेकिन बंटवारे के दौरान अगर कोई गलती हो तो कोशिकाएं इसे खुद ही सुधार लेती हैं।

इंसान का प्रतिरोधी तंत्र भी इसी आधार पर चलता है, लेकिन कैंसर हो जाए तो वह भी इसी कारण फैलता है। असल में मरम्मत तंत्र के चलते कैंसर कोशिकाएं लगातार जीवित रहती हैं। लेकिन अगर कैंसर कोशिकाओं के भीतर इस मरम्मत तंत्र को ही खत्म कर दिया जाए तो जानलेवा बीमारी नहीं फैलेगी।

तीनों वैज्ञानिकों को 10 दिसंबर को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, जिस दिन पुरस्कार के संस्थापक और स्वीडिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबल की पुण्य तिथि है। पुरस्कार के तहत मिलने वाली 80 लाख स्वीडिश क्रोनर (लगभग 9,50,000 अमेरिकी डॉलर या 8,55,000 यूरो) की राशि को तीनों विजेताओं में बराबर-बराबर बांटा जाएगा।

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