संस्कृत की प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे

लोकोक्ति शब्द लोक+उक्ति इन दो शब्दों के मेल से बना है। 'लोक' का अर्थ है– संसार अथवा समाज और 'उक्ति' का अर्थ है– कहावत। इस प्रकार लोकोक्ति का शाब्दिक अर्थ है– संसार या समाज से प्रचलित कहावत।


मुहावरे और लोकोक्तियाँ ऐसे वाक्यांश होते हैं जो अपने साधारण अर्थ को त्यागकर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हैं। भाषा को साहित्यिक, आकर्षक एवं प्रभावशाली बनाने के लिए भाषा में इनका प्रयोग किया जाता है। यदि यह कहा जाए कि मुहावरे एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से गागर में सागर भरा जा सकता है, तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। संस्कृत की कुछ प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ एवं मुहावरे नीचे दिए जा रहे हैं–


1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।
2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।
3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।
4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।
5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।
7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।
8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।
9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।
11. अतिपर्दे हता लङ्का। – घमंडी का सिर नीचा।
12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।
13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।
15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।
16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।
17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।
18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है।
19. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्य​जति पण्डित:। – भागते चोर की लंगोटी सही।
20. यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। – सेवा बिन मेवा नहीं।